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ब्राह्मणो न हन्तव्य: साधुर्न हन्तव्य: । ब्राह्मणो

ब्राह्मणो न हन्तव्य: साधुर्न हन्तव्य: ।

ब्राह्मणों एवं अच्छे स्वभाव वालों की रक्षा करो।
मनु महाराज ने राजाओं को आज्ञा दी थी।इसका कारण भी स्पष्ट किया कि---

"विषादप्यमृतं ग्राह्यम्। ( मनु० )
विष में से भी अमृत निकालना इन्हीं के वश में होता है। महाभारत युद्ध से पूर्व ही वेद विद्या का विलोपन आरम्भ हो चुका था। क्योंकि उस समय ऋषि मुनियों में भी आलस्य,प्रमाद,ईर्ष्या, द्वेष के अंकुर फूट चुके थे। जिसे काटने का प्रयास योगेश्वर श्री कृष्ण ने युद्ध क्षेत्र में "श्रीमद्भागवतगीता" का उपदेश देकर करना चाहा किन्तु वे असमर्थ रहे। फलस्वरूप अविद्या फैल गई जो शेष रहे वह भी परस्पर लड़ने झगड़ने लगे तो सम्पूर्ण भारतबर्ष छोटे छोटे भागों में बंटता चला गया।
#सांख्यदर्शन का एक सूत्र है ----
"उपदेश्योपदेष्ट्रत्वात् तत्सिध्दि:।। इतरथान्धपरम्परा।।
:
अच्छे उपदेशक के विचार धर्म अर्थ काम और मोक्ष प्राप्ति के लिए मार्ग बनाते हैं। और समाज में सुख समृद्धि बढ़ती है।किंतु जब उनकी बात को अनसुना कर दिया जाए तो परम्परायें खण्डित हो जातीं हैं और समाज भ्रमित होकर स्वेच्छाचार की ओर बढ़ता है।
"दाराशिकोह" के शब्दों में ---- 
( मैंने अरबी आदि बहुत सी भाषा पढ़ीं परन्तु मेरे मन का संदेह छूटकर आनंद न हुआ जब मैंने संस्कृत सुना और देखा तो मैं निःसंदेह हो गया। देखो काशी के "मानमंदिर" शिशुमारचक्र को कि जिसकी पूरी रक्षा भी न रही फिर भी कितना उत्तम है जो अब तक खगोल के शानदार वृतांत सा विदित होता है। अगर इसे "सवाई जयपुराधीश" संभाल और टूट-फूट को बनवाया करें तो बहुत अच्छा होगा। ऐसे शिरोमणि देश को महाभारत युद्ध ने ऐसा धक्का दिया कि अब तक भी यह अपनी पूर्व दशा में नहीं आया। जब भाई भाई को मारने लगे तो नाश होने में क्या संदेह ?
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ब्राह्मणो न हन्तव्य: साधुर्न हन्तव्य: ।

ब्राह्मणों एवं अच्छे स्वभाव वालों की रक्षा करो।
मनु महाराज ने राजाओं को आज्ञा दी थी।इसका कारण भी स्पष्ट किया कि---

"विषादप्यमृतं ग्राह्यम्। ( मनु० )
विष में से भी अमृत निकालना इन्हीं के वश में होता है। महाभारत युद्ध से पूर्व ही वेद विद्या का विलोपन आरम्भ हो चुका था। क्योंकि उस समय ऋषि मुनियों में भी आलस्य,प्रमाद,ईर्ष्या, द्वेष के अंकुर फूट चुके थे। जिसे काटने का प्रयास योगेश्वर श्री कृष्ण ने युद्ध क्षेत्र में "श्रीमद्भागवतगीता" का उपदेश देकर करना चाहा किन्तु वे असमर्थ रहे। फलस्वरूप अविद्या फैल गई जो शेष रहे वह भी परस्पर लड़ने झगड़ने लगे तो सम्पूर्ण भारतबर्ष छोटे छोटे भागों में बंटता चला गया।
#सांख्यदर्शन का एक सूत्र है ----
"उपदेश्योपदेष्ट्रत्वात् तत्सिध्दि:।। इतरथान्धपरम्परा।।
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अच्छे उपदेशक के विचार धर्म अर्थ काम और मोक्ष प्राप्ति के लिए मार्ग बनाते हैं। और समाज में सुख समृद्धि बढ़ती है।किंतु जब उनकी बात को अनसुना कर दिया जाए तो परम्परायें खण्डित हो जातीं हैं और समाज भ्रमित होकर स्वेच्छाचार की ओर बढ़ता है।
"दाराशिकोह" के शब्दों में ---- 
( मैंने अरबी आदि बहुत सी भाषा पढ़ीं परन्तु मेरे मन का संदेह छूटकर आनंद न हुआ जब मैंने संस्कृत सुना और देखा तो मैं निःसंदेह हो गया। देखो काशी के "मानमंदिर" शिशुमारचक्र को कि जिसकी पूरी रक्षा भी न रही फिर भी कितना उत्तम है जो अब तक खगोल के शानदार वृतांत सा विदित होता है। अगर इसे "सवाई जयपुराधीश" संभाल और टूट-फूट को बनवाया करें तो बहुत अच्छा होगा। ऐसे शिरोमणि देश को महाभारत युद्ध ने ऐसा धक्का दिया कि अब तक भी यह अपनी पूर्व दशा में नहीं आया। जब भाई भाई को मारने लगे तो नाश होने में क्या संदेह ?
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