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जिन्दगी की भाग दौड़़ किसी के हाथ में है गठरी तो कि

जिन्दगी की भाग दौड़़

किसी के हाथ में है गठरी तो किसी के हाथ में थैला है

बेवक्त   चलता   दिख  रहा  हमकों  लोगों का  रैला है

पहुँचने  वाला  है केवल कोई एक अपनी मंजिल तक

जिसने ओरों को  इस जिंदगी की भाग दौड़ में पैला है

कवि अजय जयहरि कीर्तिप्रद जिन्दगी की भाग दौड़......कीर्तिप्रद
जिन्दगी की भाग दौड़़

किसी के हाथ में है गठरी तो किसी के हाथ में थैला है

बेवक्त   चलता   दिख  रहा  हमकों  लोगों का  रैला है

पहुँचने  वाला  है केवल कोई एक अपनी मंजिल तक

जिसने ओरों को  इस जिंदगी की भाग दौड़ में पैला है

कवि अजय जयहरि कीर्तिप्रद जिन्दगी की भाग दौड़......कीर्तिप्रद