आईनों में धुंधला धुंधला, कोई शख्स दिखाई देता है, एक मैं हूं वहां, जो मुझसा नहीं, कोई अक्स दिखाई देता है। रेतों पर लिखी कहानी सी, लापता हो रही तकदीरें, फिसल रही जिंदगी आंखों से, बूंदों की तरह धीरे धीरे। बैचेनी बदहवासी से, होता हर रोज़ सवेरा है, मैं खुद को नज़र आता ही नहीं, कैसा ज़ालिम ये अंधेरा है। आवाज़ हलक तक आकर फिर, खामोशी में खो जाती है, क्या सोच दबाती है इसको, किसका अनजान सा पहरा है। आंखों से हो कतरा कतरा, बह रहीं उम्मीदों की तस्वीरें, फिसल रही जिंदगी आंखों से, बूंदों की तरह धीरे धीरे।। मुरझाई हुई आंखें हैं मेरी, माथों पर शिकन का सेहरा है, हंसी मेरी एक पर्दा है, पीछे ज़ख्म दिलों में गहरा है। भाग रहा पूरी शिद्दत से, पर घूम वहीं चला आता हूं, मानो घड़ी चल रही जोरों से, पर वक्त वहीं पर ठहरा है। बांध रहीं मेरा लम्हा लम्हा, मेरे बीते कल की ज़ंजीरें, फिसल रही जिंदगी आंखों से, बूंदों की तरह धीरे धीरे।। #shaayavita #aaina #zindagi #fisal #dheeredheere #waqt