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राजनीति के मंच पर , डाकू चोर लुटेरे जनता भूखी मरती

राजनीति के मंच पर , डाकू चोर लुटेरे
जनता भूखी मरती रहे , इनके धंधे बहुतेरे।

देशभक्ति का नाम ले , चल पड़े कुछ लोग
सत्ता सुख देखकर , भूल गए सब योग ।

राजनीति सेवा नहीं , लूटने का इक नाम 
तू भी लूट , मैं भी लूटूं , चलता रहे यही काम ।

राजनीति में लोकतंत्र, सबसे बड़ा उपहास
गाय यहां भूखी मरी , नेता खा गए घास ।

बहुमत मिलते ही बन गया , गधा थानेदार
घोड़े सांकल से बंधे , शेर बन गए सियार ।

न्यायालय बाजार है , बिकते न्यायाधीश 
रूपया रिश्वत जिसने दिया, उसके सर आशीष ।

मंदिर मस्जिद का अलाव , जल रहा दिन रात
मतलब की सिक रही रोटियां , व्यर्थ हो रही बात।

यह कैसा कानून है , यह किसका कानून
बलात्कारी मौज उड़ाए , अबला पीती खून ।

बेच रोज जमीर को , बन बैठे सरताज 
कौवे मोती खा रहे , हंस हुआ मोहताज ।

अफजल आज खुश है , मिलेगा उसको काम 
धर्म की रोटी फिर सिकेगी , आएगा उसका नाम।

सफेद वस्त्र आजकल, बना विशेष पहचान
मूंछ साफ हाथ मोबाइल , नेता उसको जान ।

फीकी हंसी विनम्रता , चुनाव के हथियार
पिंजरे में शेर पड़े , आजाद घूमे सियार ।

कथनी करनी देखकर, जनता करे पुकार
अंगूठा छाप के हाथ में, सौंप दिये अधिकार।

घर की घर में कैसे रहे , कैसे देखें आंच 
दुश्मन को सही कहे , खेलें नंगा नाच ।

बाढ़ बहा ले जाती , कूड़ा डंगर ढोर 
चुनावी दंगल आते ही , चोर मचाते शोर ।

चोरों की मंडली यहां , रोज संसद में बैठे
विकास के घोड़े की खातिर, काठ के उल्लू ऐंठे ।
🌷👰💓💝
...✍ कमल शर्मा'बेधड़क' राजनीति के मंच पर , डाकू चोर लुटेरे
जनता भूखी मरती रहे , इनके धंधे बहुतेरे।

देशभक्ति का नाम ले , चल पड़े कुछ लोग
सत्ता सुख देखकर , भूल गए सब योग ।

राजनीति सेवा नहीं , लूटने का इक नाम 
तू भी लूट , मैं भी लूटूं , चलता रहे यही काम ।
राजनीति के मंच पर , डाकू चोर लुटेरे
जनता भूखी मरती रहे , इनके धंधे बहुतेरे।

देशभक्ति का नाम ले , चल पड़े कुछ लोग
सत्ता सुख देखकर , भूल गए सब योग ।

राजनीति सेवा नहीं , लूटने का इक नाम 
तू भी लूट , मैं भी लूटूं , चलता रहे यही काम ।

राजनीति में लोकतंत्र, सबसे बड़ा उपहास
गाय यहां भूखी मरी , नेता खा गए घास ।

बहुमत मिलते ही बन गया , गधा थानेदार
घोड़े सांकल से बंधे , शेर बन गए सियार ।

न्यायालय बाजार है , बिकते न्यायाधीश 
रूपया रिश्वत जिसने दिया, उसके सर आशीष ।

मंदिर मस्जिद का अलाव , जल रहा दिन रात
मतलब की सिक रही रोटियां , व्यर्थ हो रही बात।

यह कैसा कानून है , यह किसका कानून
बलात्कारी मौज उड़ाए , अबला पीती खून ।

बेच रोज जमीर को , बन बैठे सरताज 
कौवे मोती खा रहे , हंस हुआ मोहताज ।

अफजल आज खुश है , मिलेगा उसको काम 
धर्म की रोटी फिर सिकेगी , आएगा उसका नाम।

सफेद वस्त्र आजकल, बना विशेष पहचान
मूंछ साफ हाथ मोबाइल , नेता उसको जान ।

फीकी हंसी विनम्रता , चुनाव के हथियार
पिंजरे में शेर पड़े , आजाद घूमे सियार ।

कथनी करनी देखकर, जनता करे पुकार
अंगूठा छाप के हाथ में, सौंप दिये अधिकार।

घर की घर में कैसे रहे , कैसे देखें आंच 
दुश्मन को सही कहे , खेलें नंगा नाच ।

बाढ़ बहा ले जाती , कूड़ा डंगर ढोर 
चुनावी दंगल आते ही , चोर मचाते शोर ।

चोरों की मंडली यहां , रोज संसद में बैठे
विकास के घोड़े की खातिर, काठ के उल्लू ऐंठे ।
🌷👰💓💝
...✍ कमल शर्मा'बेधड़क' राजनीति के मंच पर , डाकू चोर लुटेरे
जनता भूखी मरती रहे , इनके धंधे बहुतेरे।

देशभक्ति का नाम ले , चल पड़े कुछ लोग
सत्ता सुख देखकर , भूल गए सब योग ।

राजनीति सेवा नहीं , लूटने का इक नाम 
तू भी लूट , मैं भी लूटूं , चलता रहे यही काम ।
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