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"कलकल निश्छल अविरल सा झरना हो तुम एक अधपके मूढ़ कवि

"कलकल निश्छल अविरल सा झरना हो तुम
एक अधपके मूढ़ कवि की प्रेरणा हो तुम
कब तक रखे कोई दरवाजा दिल का अपना 
सरकार भी हिल जाय वो धरना हो तुम "

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©सदैव
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