दिल का जो दुश्मन है दिल में धड़कता है टूट चुका कंगन फिर भी खनकता है नाम मिरा लेकर छेड़ते हैं उसको क्यों मिरा दीवाना अबको खटकता है मैं ही नहीं पागल उसकी जुदाई में सुनती हूँ रातों को वो भी भटकता है।