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रोज़ नहीं कभी -कभी,! कभी- कभी टूट जाता मन और ह्रदय

रोज़ नहीं कभी -कभी,! कभी- कभी टूट जाता मन और ह्रदय पर होता कठोर आघात, प्रतीत होता जैसे मेरे मस्तिष्क की तंत्रिका कोशिकाएं अवरुद्ध हो पड़ी हों, और ह्रदय से पूरी देह में हो रहीं रक्त आपूर्ति कुंदा गयी हो, जैसे खून का थक्का वहनियों में जम गया हो,!

वैसे तो मन और ह्रदय हमेशा ही विपरीत दिशा में विचरण करते हैं, परन्तु यह एक ऐसा केंद्र बिंदु जहाँ दोनों आपस में टकरा जाते, गला भर जाता है, आँखें अकस्मात ही बहने हैं लगती, और फूट पड़ता कभी मौन क्रंदन और कभी चीखें बदहावास ही,!

                                                     - ' अल्प '✍️

#alpanas,,💚"
रोज़ नहीं कभी -कभी,! कभी- कभी टूट जाता मन और ह्रदय पर होता कठोर आघात, प्रतीत होता जैसे मेरे मस्तिष्क की तंत्रिका कोशिकाएं अवरुद्ध हो पड़ी हों, और ह्रदय से पूरी देह में हो रहीं रक्त आपूर्ति कुंदा गयी हो, जैसे खून का थक्का वहनियों में जम गया हो,!

वैसे तो मन और ह्रदय हमेशा ही विपरीत दिशा में विचरण करते हैं, परन्तु यह एक ऐसा केंद्र बिंदु जहाँ दोनों आपस में टकरा जाते, गला भर जाता है, आँखें अकस्मात ही बहने हैं लगती, और फूट पड़ता कभी मौन क्रंदन और कभी चीखें बदहावास ही,!

                                                     - ' अल्प '✍️

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alpanabhardwaj6740

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