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ये बारिश जो हो रही है ना बाहर ! ये तो कभी कभी होती

ये बारिश जो हो रही है ना बाहर !
ये तो कभी कभी होती है ,
तुम तो रोज़ बरसते हो मुझमें | देखो ना तुम...ये बारिश जो हो रही है ना बाहर, ये तो कभी कभी होती है, तुम तो रोज़ बरसते हो मुझमें...ये सभी साधारण लोग तो कभी कभी देख पाते हैं मेघों के प्रेम को...वो प्रेम जिस से वो धरती को आच्छादित कर लेता है, तरल कर देता है उसके विरह को...विरह जो उसे दिन प्रतिदिन सुखाये जा रहा था...हंसने लग जाती है ये धरा बादलों के इस सन्देश से, हरी हो जाती है, सुगन्धित इत्र की तरह महकने लग जाती है और प्रसन्न कर देती है अपने यौवन से इस प्रकृति को...तुम्हे पता है ! मेरे अंदर तो ऐसा सावन रोज़ लाते हो तुम...

और तुम्ह
ये बारिश जो हो रही है ना बाहर !
ये तो कभी कभी होती है ,
तुम तो रोज़ बरसते हो मुझमें | देखो ना तुम...ये बारिश जो हो रही है ना बाहर, ये तो कभी कभी होती है, तुम तो रोज़ बरसते हो मुझमें...ये सभी साधारण लोग तो कभी कभी देख पाते हैं मेघों के प्रेम को...वो प्रेम जिस से वो धरती को आच्छादित कर लेता है, तरल कर देता है उसके विरह को...विरह जो उसे दिन प्रतिदिन सुखाये जा रहा था...हंसने लग जाती है ये धरा बादलों के इस सन्देश से, हरी हो जाती है, सुगन्धित इत्र की तरह महकने लग जाती है और प्रसन्न कर देती है अपने यौवन से इस प्रकृति को...तुम्हे पता है ! मेरे अंदर तो ऐसा सावन रोज़ लाते हो तुम...

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