रात देखा तुम्हें सपने में शर्मायी सी अपने लटों को समेट रही थी कर रही थी अपने-आप से बातें पर नजरें तुम्हारी इधर ही टिकी थी, खुबसूरत सी वो मुस्कान जो हर दफा ले जाती थी मेरी जान वो धीरे से तेरा मेरी ओर आना वो दिल-ही-दिल में तेरा घबराना, तुम थी तो बेहद पास पर फिर भी बहुत दूर क्या समा था जो ठहर गया कैसे हुआ था मैं मजबूर, कि ख्वाहिश़ यही, इक रोज तुम सच में ये दीदार दो कुछ सुनूँ मैं, कुछ कहो तुम और बेईंतहाँ मुझे प्यार दो। देखा तुझे तो हो गया दीवाना पा लूँ तुझे तो मरने का न हो ग़म! - A song from Koyla #रात