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स्वर्ण बाली 5 माथे से जो सरके सारी, कंधो पे ना

स्वर्ण बाली 5



माथे से जो सरके सारी, कंधो पे ना रुकने वाली।।
स्तनों पे बारी बारी, उतरे ठहरे उतरे सारी।
प्रकट हो गंभिर नाभि, स्वयं को समेटे नारी।।
सांस भरे भारी भारी, यौवन को उभारे सारी।

©Shailendra Shainee Official
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