कॉलेज वाली चाय की टपरी, वो कॉलेज की चाय की टपरी, यूँ कुछ बोला करती थी ठंडी के मौसम में जब हम निपट अकेले होते थे वो अंधेरी गलियों में जब हम कांप कांप कर आते थे , कुछ दूरी पर एक दोस्त , फिर दूजा कर धीरे धीरे सब मिल जाते थे फिर पास रही बाबा की चाय याद आ जाती थी फिर पहुँच चाय की टपरी पर सब मिलकर मौज उड़ाते थे धीरे धीरे कर भाग सभी वापिस गलियों में जाते थे फस जाता पप्पू दोस्त मेरा फिर पैसे देकर आते थे बस यही कहानी कॉलेज की ,तबसे टापरी कहलाती थी