इस कोरोना काल में जहां घर से निकलना लगभग बंद हो गया, वहां आज मुझे उन जगहों के बारे में लिखना हैं, जहां मैं जाना चाहती हूं। एक सच बात बताऊं मैं आज तक ट्रेन में नहीं बैठी। दिल्ली से बाहर 2-3 बार जाना हुआ और हर बार कैब से। बचपन से स्कूल में जब सब छुट्टियों में अपनी घूमने की कहानियां बताते थे, मैं बस चुपचाप सुनती थी। ऐसे तो मेरी कोई बहुत बड़ी लिस्ट नहीं है पर हां बचपन से सिर्फ़ एक जगह है जहां मुझे हर हाल में जाना ही है। जब पहली बार *3 इडियट्स* में उस जगह को देखा था, उसकी सुन्दरता की मैं कायल हो गई थी। फिर *जब तक है जान* तो पूरी फ़िल्म ही वहां दर्शाई गई है। जी हां वो है "लद्दाख"। नीला पानी, आकाश को चूमते पर्वत और सीधा एवं सरल जीवन, कितनी शांति है ना वहां। पहले लद्दाख जाना आसान लगता था, लगता था एक दिन अपना ये सपना ज़रूर पूरा करूंगी। मैंने तो बुलेट चलानी भी सीखी थी। पर पिछले साल उसके केंद्र शासित प्रदेश बनने और उसके बाद हो रहे निरंतर हो रही जंग के बाद पर्यटकों का वहां जाना थोड़ा नामुमकिन सा ही है। इसके अलावा मुझे मौका मिला तो केरल और केदारनाथ भी जाना चाहती हूं। पर वहां भी कुछ सालों पहले कुदरत अपना कहर दिखा चुकी है, जिसकी वजह से वहां भी काफ़ी कुछ नष्ट हो चुका है। अब देखतें है भविष्य में क्या होता है। पहले तो कोरोना कहीं जाए, तब ही हम कहीं जा पाएंगे।। •| संक्षिप्त निबन्ध |• विषय - जिन स्थानों पर आप जाना चाहते हैं। इस कोरोना काल में जहां घर से निकलना लगभग बंद हो गया, वहां आज मुझे उन जगहों के बारे में लिखना हैं, जहां मैं जाना चाहती हूं। एक सच बात बताऊं मैं आज तक ट्रेन में नहीं बैठी। दिल्ली से बाहर 2-3 बार जाना हुआ और हर बार कैब से। बचपन से स्कूल में जब सब छुट्टियों में अपनी घूमने की कहानियां बताते थे, मैं बस चुपचाप सुनती थी। ऐसे तो मेरी कोई बहुत बड़ी लिस्ट नहीं है पर हां बचपन से सिर्फ़ एक जगह है जहां मुझे हर हाल में जाना ही है। जब पहली बार *3 इडियट्स* में उस जगह को देखा था, उसकी सुन्दरता की मैं कायल हो गई थी। फिर *जब तक है जान* तो पूरी फ़िल्म ही वहां दर्शाई गई है। जी हां वो है "लद्दाख"। नीला पानी, आकाश को चूमते पर्वत और सीधा एवं सरल जीवन, कितनी शांति है ना वहां। पहले लद्दाख जाना आसान लगता था, लगता था एक दिन अपना ये सपना ज़रूर पूरा करूंगी। मैंने तो बुलेट चलानी भी सीखी थी। पर पिछले साल उसके केंद्र शासित प्रदेश बनने और उसके बाद हो रहे निरंतर हो रही जंग के बाद पर्यटकों का वहां जाना थोड़ा नामुमकिन सा ही है। इसके अलावा मुझे मौका मिला तो केरल और केदारनाथ भी जाना चाहती हूं। पर वहां भी कुछ सालों पहले कुदरत अपना कहर दिखा चुकी है, जिसकी वजह से वहां भी काफ़ी कुछ नष्ट हो चुका है। अब देखतें है भविष्य में क्या होता है। पहले तो कोरोना कहीं जाए, तब ही हम कहीं जा पाएंगे।।