मन बंजारा हुआ बांवरा, कहाँ किसी की सुनता है। रहता है अपनी ही धुन में, ख़्वाब ख़ुशी के बुनता है। हरपल गिरता, हरपल संभलता, अल्हड़ सी चाल है। मतबाला, मस्ताना आशिक़, क्या कहूँ क्या हाल है। समझ नहीं इसको ज़रा सी, अपनी ख़ुशियाँ चुनता है। रहता है अपनी ही धुन में, ख़्वाब ख़ुशी के बुनता है। गैरों की परवाह ना इसको, ना अपनों से कोई वास्ता। अपनी मर्जी का मालिक है, चुनता है ख़ुद ही रास्ता। रहता है बेफ़िक्र ये हरदम, कहाँ किसी की सुनता है। रहता है अपनी ही धुन में, ख़्वाब ख़ुशी के बुनता है। थोड़ा पागल, थोड़ा चंचल, बस अपनी ही करता है। जाने किसकी चाहत में ये, बस आँहें भरता रहता है। नटखट है ये शैतान बड़ा, कहाँ किसी की सुनता है। रहता है अपनी ही धुन में, ख़्वाब ख़ुशी के बुनता है। ♥️ Challenge-780 #collabwithकोराकाग़ज़ ♥️ इस पोस्ट को हाईलाइट करना न भूलें :) ♥️ रचना लिखने के बाद इस पोस्ट पर Done काॅमेंट करें। ♥️ अन्य नियम एवं निर्देशों के लिए पिन पोस्ट 📌 पढ़ें।