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और कहां क्या करूंगा इन रोशन गलियारों का मैं तो मार

और कहां
क्या करूंगा इन रोशन गलियारों का
मैं तो मारा हूं महबूब के इशारों का
अरे तुम सब रहते हो वहां खुशियों के यहां 
अरेबिन खुशी क्या करूं इस आशियाने का
अरे तुम रखो जमीन और शहर अपना
बस दुआ में मुझे महबूब और यार के नाम कर दो
मैं रह जाऊंगा काफिरों की बस्ती में 
काफिर बनके
शशांक 
                                    आबशार..... Part 4

©Shashank Prashar #poemcontinue final part 4 

#letter
और कहां
क्या करूंगा इन रोशन गलियारों का
मैं तो मारा हूं महबूब के इशारों का
अरे तुम सब रहते हो वहां खुशियों के यहां 
अरेबिन खुशी क्या करूं इस आशियाने का
अरे तुम रखो जमीन और शहर अपना
बस दुआ में मुझे महबूब और यार के नाम कर दो
मैं रह जाऊंगा काफिरों की बस्ती में 
काफिर बनके
शशांक 
                                    आबशार..... Part 4

©Shashank Prashar #poemcontinue final part 4 

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