गुमनाम-सा मैं खुद,तुझे नाम देता रहा भुला सबकुछ अपना, तुझे सुबह-शाम देता रहा और तू निकला इतना सुखनसाज़ और बे-गैरत मुझसे अपने मतलब के काम लेता रहा सोचता था कितना लगाव है मुझसे,मगर बेवफाई ले आगोश मे, तू खुद को आराम देता रहा इश्क़ का आशियां था या कसाईखाना था तू धीरे से मेरे कत्ल को अंजाम देता रहा जिस तरह से खाब मर गए मेरे और उमीदें भी इक्कठा कर इन सब को मैं शमशान देता रहा अच्छा याद तो कर एक बार ए कमजर्फ़ मैं कैसे तुझे अपनी आन बान शान देता रहा तू तो बैठ गया आगोश मे औरो की जाकर और मैं तड़फती रूह को जाम-पे-जाम देता रहा सार पूरा पढ़ कर ही लाइक करे मैं झूठे लाइक्स के लिए नही लिखता #बेवफाई #सार #शायरी #गज़ल