|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 11
।।श्री हरिः।।
5 - भक्ति-मूल-विश्वास
'पानी!' कुल दस गज दूर था पानी उनके यहाँ से; किंतु दुरी तो शरीर की शक्ति, पहुँचने के साधनपर निर्भर है। दस कोस भी दस पद जैसे होते हैं स्वस्थ सबल व्यक्ति को और आज के सुगम वायुयान के लिये तो दस योजन भी दस पद ही हैं; किंतु रुग्ण, असमर्थ के लिए दस पद भी दस योजन बन जाते हैं - 'यह तो सबका प्रतिदिन का अनुभव है।
'पानी!' तीव्र ज्वराक्रान्त वह तपस्वी - क्या हुआ जो उससे दस गज दूर ही पर्वतीय जल-स्त्रोत है। वह तो आज अपने आसन से उठने में भी असमर्थ है। ज्वर की तीक्ष्णता के कारण उसका कण्ठ सूख गया है। नेत्र जले जाते हैं। वह अत्यन्त व्याकुल है।