कहीं गहरे दफ़न दिल में, ये अफ़सोस रहने दो, मैं खामोश हूँ मुझको, अब खामोश रहने दो..!! खंजर से भी गहरा, ज़ख़म हर्फों का है लगता, ज़ुबानों में यहाँ शामिल, अभी ये जोश रहने दो..!! फ़क़त मतलब की ख़ातिर ही, रिश्ते हैं जमाने में, नशा-ए-खुदगर्ज़ी में सबको, यूँ ही मदहोश रहने दो..!! कभी दिल की ख़लिश मेरी, यहाँ समझा नहीं कोई, मेरी ज़द में यही बाक़ी, ग़म-ए-आग़ोश रहने दो..!! जाम-ए-ज़हर-ए-फ़ितरत अब, पिलाते रोज़ हैं साक़ी, है मयस्सर ये नशा मुझको, इन्हें तो होश रहने दो..!! उजड़ते हैं चमन हर रोज़, चुपचाप ज़माना देखे है, हाँ इनकी रगों में है पानी, इन्हें बे-ज़ोश रहने दो..!! जब भी कलम उठाता हूँ, "मतवाला" कर देती है, मुझे मेरी ही नज़्मों में, तुम ख़ानाबदोश रहने दो..!! *हर्फ़ = शब्द *फ़क़त = सिर्फ़ *नशा-ए-खुदगर्जी = मतलबपरस्ती का नशा *ख़लिश = चिंता *जाम-ए-ज़हर-ए-फ़ितरत = ज़हरीले स्वभाव के ज़हर का प्याला *साक़ी = शराब पिलाने वाला *मयस्सर = प्राप्त,हासिल *रग= नस,धमनी