Nojoto: Largest Storytelling Platform

रात नादीदा बलाओं के असर में हम थे ख़ौफ़ से सहमे हु

रात नादीदा बलाओं के असर में हम थे
ख़ौफ़ से सहमे हुए सोग-नगर में हम थे

पाँव से लिपटी हुई चीज़ों की ज़ंजीरें थीं
और मुजरिम की तरह अपने ही घर में हम थे

वो किसी रात इधर से भी गुज़र जाएगा
ख़्वाब में राहगुज़र राहगुज़र में हम थे

एक लम्हे के जज़ीरे में क़याम ऐसा था
जैसे अनजाने ज़मानों के सफ़र में हम थे

डूब जाने का सलीक़ा नहीं आया वर्ना
दिल में गिर्दाब थे लहरों की नज़र में हम थे

#साक़ी फ़ारूक़ी

©साहिर उव़ैस sahir uvaish
  #kitaab