*रहता हूं किराये की काया में* *रोज़ सांसों को बेच कर किराया चूकाता हूँ।* *मेरी औकात है बस मिट्टी जितनी* *बातें मैं महल मिनारों की कर जाता हूँ।* *जल जायेगी ये मेरी काया एक दिन* *फिर भी इसकी खूबसूरती पर इतराता हूँ।* *मुझे पता हे मैं खुद के सहारे श्मशान तक भी ना जा सकूंगा* *इसीलिए जमाने में दोस्त बनाता हूँ!"* #किरायेकीकाया #nirmalattri #anupamgupta #ashishvats #kapilnayyar #g #k