कभी कभी सोचता हूँ खुद पर लिखू पर अल्फाज ही नही मिलते खुद को बयां करने को खुशियां लिखू या गम लिखू या लिखू हर वो रात जब रोते हुए कुछ मिलता नही था आँसू भरने को फिर सोचा सुक्रयादा करु रब का जिसने दी ज़िन्दगी या हर दिन मजबूर किया मरने को कभी कभी सोचता हूँ खुद पर लिखू पर अल्फाज ही नही मिलते खुद को बयां करने को।।।।। भागना ठीक होगा मेरा अपनी हर तकलीफ से या लड़ना ठीक होगा फिर याद आया पापा ने कहा था कभी किसी से ना डरने को अपना समझा सबको नादान था हर इक चेहरा थोड़ा अनजान था सबने दिल तोडा कुछ बचा ही नही अब हरने को कभी कभी सोचता हूँ खुद पर लिखू पर अल्फाज ही नही मिलते खुद को बयां करने को।।।।।।।।।। अब सपनो पे आके रुक गयी बात कुछ टूट गये खुद कुछ को तोड़ दिया मैने हिम्मत ही नही थी पूरा करने को बस अब जिन्दगी यूँ चल रही थी के कोरी थी किताब फिर भी मोहताज थी एक एक पन्ने को कभी कभी सोचता हूँ खुद पर लिखू पर अल्फाज ही नही मिलते खुद को बयां करने को।।।।।।।।। #Life