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की प्रेम की परिभाषा, जहां बंधन से ज़्यादा मुक्त कर

की प्रेम की परिभाषा,
जहां बंधन से ज़्यादा मुक्त कर देना होता है,
बस निस्वार्थ भाव से प्रेम करना सबको होता है,
और कर्म हमेशा हमारे जीवन में प्रधान होता है,
जहां फल की चिंता ना कर के बस अपने कार्य के प्रति हमारा मन पूरी तरह समर्पित होता है। सुप्रभात।
समस्तजन को जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएँ।
श्री कृष्ण चेतना का परम रूप हैं। मानव जीवन को व्याख्यायित करता उनका स्वरूप हमारे लिए परम प्रेरणा का स्रोत है। 
#श्रीकृष्णजन्माष्टमी #collab #yqdidi  #YourQuoteAndMine
Collaborating with YourQuote Didi
की प्रेम की परिभाषा,
जहां बंधन से ज़्यादा मुक्त कर देना होता है,
बस निस्वार्थ भाव से प्रेम करना सबको होता है,
और कर्म हमेशा हमारे जीवन में प्रधान होता है,
जहां फल की चिंता ना कर के बस अपने कार्य के प्रति हमारा मन पूरी तरह समर्पित होता है। सुप्रभात।
समस्तजन को जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएँ।
श्री कृष्ण चेतना का परम रूप हैं। मानव जीवन को व्याख्यायित करता उनका स्वरूप हमारे लिए परम प्रेरणा का स्रोत है। 
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afrinjahan5980

Afrin Jahan

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