मैं ये जानू के मैं ये जानू या न जानू। जान है ज़रा सी अभी भी, या बे-जान हूँ। मैं सोचूँ के जो मैं, ये सब सोचता हूँ। फिर सोचूँ के मैं तो, कुछ भी सोचता हूँ। मैं जानता हूँ, मंज़िल-ए-डगर मैं अपनी। उस डगर पर ही मगर, मैं तो लापता हूँ। तलाशता हूँ, ऐ हमसफ़र, मैं तुझे बे-सबर हूँ। मगर न खबर, अब तो बस,मैं तुझे मांगता हूँ। चाहता हूँ, अब तो बस, मैं तुझे चाहता हूँ। हर एक लम्हें में अपने, मैं तुझे चाहता हूँ। माँगता हूँ, दिल-ए-गुज़ारिश में मेरी, सिर्फ तुझे। मुझे है यक़ीन, ख़ुदा पर, मैं इन्तिज़ार करता हूँ। डरता हूँ, अब कहीं मैं, तेरा दिल न दुखा दूँ। अब दर्द-ए-दिल मैं, ज़रा सा कम लिखता हूँ। सुनता हूँ, बिन मौसम कभी न बरसात होती है। होती है, मैं जब बेसब्र होकर, तेरी राह तकता हूँ। थकता हूँ, अब मैं दीदार-ए-इन्तिज़ार में तेरे। शायद न हो मुमकिन, ख़ुदा के जहाँ में चलता हूँ। ढलता हूँ, बिन ढले कहाँ, दीदार-ए-चाँद होता है। देखूँगा हर घड़ी तुझे वहाँ से, चलो अब मैं सोता हूँ। ©Manish Sharma #MS_Genius #poetryunplugged #CloudyNight #nojoto #nojotoapp