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कभी कभी लगता है, आजाद कर दू तुम्हें अपने हर बंधन स

कभी कभी लगता है, आजाद कर दू तुम्हें अपने हर बंधन से, 
तो तुम जी सको अपने मन से, 
और कुछ ऐसा हो जाए कि मुझे फर्क न पड़े, कि तुम मुझसे ज्यादा किसी और के साथ वफादर कैसे हुए, 
और अगर तुम्हारे लिए दूसरे ही जरुरी हैं, तो मैं कौन हूं , कहां हूं तुम्हारे लिए, 
मुझे तुमसे ये जान ने की ख्वाहिश ही ना हो.... फिर लगता है, कि ये करने के लिए, मुझे तुम्हें नहीं, खुद को ही आजाद करना होगा...तुम्हारी गिरफ़्त से जिससे मैं जी सकू, अपने लिए, खड़ी हो सकू..बिना तुमसे ये अपेक्षा किए कि तुम मेरे लिए कुछ करो या कहो.....

©Dr.Khushboo
  #Giraft