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***मिट्टी *** मिट्टी ने पूछा मिट्टी से काहे का है

***मिट्टी ***

मिट्टी ने पूछा मिट्टी से
काहे का है गर्ब तुझे 

आज तू मुझे रौन्द रहा 
कल रौन्दूँगी मैं तुझे 

पाकर मिट्टी की काया 
तू तो भ्रम में भरमाया 

नश्वर को मान बैठा शाश्वत 
ये मिट्टी है इसकी कोई नहीं कीमत 

झूठा मान , अभिमान 
रह ज़ाना है य़हीं ले अब मान 

कर्म ही तेरा साथी है 
व्यवहार ही तेरा मीत 

सच्चे कर्मों से तू अपने 
ले इस जग को जीत 

मुझमें जब भी तू समायेगा 
सच कहती हूँ जग में नाम तेरा रह जायेगा ***मिट्टी ***

मिट्टी ने पूछा मिट्टी से
काहे का है गर्ब तुझे 

आज तू मुझे रौन्द रहा 
कल रौन्दूँगी मैं तुझे
***मिट्टी ***

मिट्टी ने पूछा मिट्टी से
काहे का है गर्ब तुझे 

आज तू मुझे रौन्द रहा 
कल रौन्दूँगी मैं तुझे 

पाकर मिट्टी की काया 
तू तो भ्रम में भरमाया 

नश्वर को मान बैठा शाश्वत 
ये मिट्टी है इसकी कोई नहीं कीमत 

झूठा मान , अभिमान 
रह ज़ाना है य़हीं ले अब मान 

कर्म ही तेरा साथी है 
व्यवहार ही तेरा मीत 

सच्चे कर्मों से तू अपने 
ले इस जग को जीत 

मुझमें जब भी तू समायेगा 
सच कहती हूँ जग में नाम तेरा रह जायेगा ***मिट्टी ***

मिट्टी ने पूछा मिट्टी से
काहे का है गर्ब तुझे 

आज तू मुझे रौन्द रहा 
कल रौन्दूँगी मैं तुझे