"आग" महकती इन फ़िज़ाओं में, चमन की ठण्डी हवाओं में, जानें कहाँ से आ गया है, द्वेष-ईर्ष्या का ये राग आग आग बस आग आग। गुलों से ये मिट्टी महका करती थी, आंगन में चिड़िया चहका करती थी, किसने... किसने आखिर जला दिया, ये फूलों से महकता बाग, आग आग बस आग आग। एकता की मिसाल दुनिया ने देखी, किसने राजनीतिक़् रोटियां सेकीं, गुलदस्ते के इन गुलों बीच, नफरतों का जो लगाया दाग, आग आग बस आग आग। उखाड़ फेकों इन धूर्तों को, नफरतों की मूरतों को, मत पिलाओ दूध इनको, डसने वाले हैं ये नाग, आग आग बस आग आग। शुभम सक्सेना 'शुभ' "आग" महकती इन फ़िज़ाओं में, चमन की ठण्डी हवाओं में, जानें कहाँ से आ गया है, द्वेष-ईर्ष्या का ये राग आग आग बस आग आग।