यूँ तो खेल मनोरंजन का साथी है,मानसिकता अगर हावी हो जाये तो बात हार जीत की आती हैं, खेल खेल में हो जाये प्रतियोगिता तब प्रतिस्पर्धा तो लक्ष्य बाज के गिद्ददृष्टि सी नजर आती हैं, इसी खेल में कभी हार तो कभी जीत की तनातनी सी रहती हैं हार कर भी जीत जाना यहीं समझदारी कहती है, माना जीत एक मुकाम तक ले जाती है,पर हार एक बेहतरीन मुदर्रिस की भांति ज्ञान का अनुभव दे जाती हैं, हर वक़्त जीतना सफलता का महत्व कम करता है,हार उसी सफलता की लालसा को लालायित कर जाती है, एक दृष्टव्य बेहतरीन प्रदर्शन देता है, देखो माता पिता को खुद हार कर वो तुम्हें जीतने का पूरा मौका देता है, क्या कहे उस परोपकारी के परोपकार का जो जीवनपथ पर जीता है,पर जमाने के मोह से हार जाता है, मजबूर मजदूर जो बेबस हो गए थे इकरोज,अपनी हार के शिखर पर अपनी जीत की पताका बड़े शान से लहराता हैं 👉 ये हमारे द्वारा आयोजित प्रतियोगिता संख्या - 9 है, आप सभी को दिए गए शीर्षक के साथ Collab करना है..! 👉 आप अपनी रचना को आठ पंक्तियों (8) में लिखें..! 👉 Collab करने के बाद Comment box में Done जरूर लिखें, और Comment box में अनुचित शब्दों का प्रयोग न करें..! 👉 प्रतियोगिता में भाग लेने की अंतिम समय सीमा कल सुबह 11 बजे तक की है..!