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धर्म एक बेहद संजीदा और संवेदनशील मुद्दा जिसका नाम

 धर्म एक बेहद संजीदा और संवेदनशील मुद्दा जिसका नाम आते ही आप अपनी आंखें मूंद लेते हैं विश्वास से, श्रद्धा से और हां इसके खिलाफ सुनना तो बिल्कुल पसंद नहीं करते पर हर सिक्के के दो पहलू होते हैं इसी तरह यह विश्वास जब अंधविश्वास में और श्रद्धा आडंबर में परिवर्तित हो जाए तब इसी धर्म का एक अलग रूप हमारे सामने आता है। यहां मैं किसी भी धर्म के खिलाफ नहीं बोलने वाली जिससे किसी की धार्मिक आस्था को ठेस पहुंचे मैं तो सिर्फ उन धर्मगुरुओं के बारे में बात करना चाहती हूं जो इस धर्म की आड़ में धर्म को ही शर्मसार कर रहे हैं आज जिस तरह हमारी समाज के प्रतिष्ठित धर्म गुरुओं का घिनौना और बदसूरत चेहरा या यूं कहें चरित्र हमारे सामने आ रहा है इसने हमें सोचने पर मजबूर कर दिया कि इतने खराब व्यक्तित्व वाले व्यक्ति जो अभी तक हमें धर्मगुरु बन कर उपदेश दे रहे थे यह स्वयं पालन करते थे इनका ? आखिर कहां से आए? कौन थे और कैसे अचानक से महान संत तक बन गए। किसने बनाया इन्हें इतना महान.....बिना यह जाने कि वास्तव में यह कौन है क्या यह वाकई में ज्ञानी है सदाचारी हैं उस पद के इस सम्मान के लायक हैं जो हम हमारा समाज इन्हें दे रहा है, हम ऐसा नहीं कहते कि सारे एक से ही होते हैं सारे एक से कैसे हो सकते हैं जबकि इंसान की एक हाथ की उंगलियां भी एक सी नहीं होती पर कुछ ऐसे लोग हैं जो इस पद का सम्मान का,गरिमा का दुरुपयोग करके हमारे समाज में अपना साम्राज्य स्थापित कर रहे हैं या कर चुके हैं और ऐसा करने के लिए मेरी नजर में उनसे पहले दोषी हम लोग हैं जो बिना किसी जांच परख के बिना सोचे समझे भेड़ चाल में शामिल हो जाते हैं। जबकि एक छोटी सी छोटी चीज खरीदते वक्त पूरी होशियारी का परिचय देते हुए परख कर के ही चीज लेते हैं फिर धर्म के नाम पर अपनी सारी जानकारी सारी परख सारी बुद्धिमानी कहां चली जाती है? क्यों हम ऐसे ही किसी व्यक्ति को इतना महान बना देते हैं और उसे ऐसे उचित स्थान पर बैठा देते हैं जहां से फिर वह अपना शासन चलाने लगता है और उनके अंधभक्त उनके एक इशारे पर कुछ भी करने को तैयार हो जाते हैं और फिर इन्हीं ढोंगी धर्मगुरुओं से निकलते हैं राम रहीम, रामपाल, आसाराम और भी ना जाने कितने ही ऐसे बाबा जो अपने पद की आड़ में सारे काले कारनामों को अंजाम देते हैं और उनके इस कृत्य के लिए कहीं ना कहीं हम हमारा समाज जिम्मेदार होता है क्योंकि उसको उस स्थान तक पहुंचाने का काम हम करते हैं यदि समाज अपनी सजगता दिखाएं और ऐसे बाबाओं का बहिष्कार कर दे तो हमारा समाज ऐसे लोगों की गिरफ्त से छूट सकता है। 
इसलिए सजग बने धर्म के नाम पर विश्वास तो रखें और इस विश्वास को अंधविश्वास और अंध भक्ति में बदलने ना दे।
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 धर्म एक बेहद संजीदा और संवेदनशील मुद्दा जिसका नाम आते ही आप अपनी आंखें मूंद लेते हैं विश्वास से, श्रद्धा से और हां इसके खिलाफ सुनना तो बिल्कुल पसंद नहीं करते पर हर सिक्के के दो पहलू होते हैं इसी तरह यह विश्वास जब अंधविश्वास में और श्रद्धा आडंबर में परिवर्तित हो जाए तब इसी धर्म का एक अलग रूप हमारे सामने आता है। यहां मैं किसी भी धर्म के खिलाफ नहीं बोलने वाली जिससे किसी की धार्मिक आस्था को ठेस पहुंचे मैं तो सिर्फ उन धर्मगुरुओं के बारे में बात करना चाहती हूं जो इस धर्म की आड़ में धर्म को ही शर्मसार कर रहे हैं आज जिस तरह हमारी समाज के प्रतिष्ठित धर्म गुरुओं का घिनौना और बदसूरत चेहरा या यूं कहें चरित्र हमारे सामने आ रहा है इसने हमें सोचने पर मजबूर कर दिया कि इतने खराब व्यक्तित्व वाले व्यक्ति जो अभी तक हमें धर्मगुरु बन कर उपदेश दे रहे थे यह स्वयं पालन करते थे इनका ? आखिर कहां से आए? कौन थे और कैसे अचानक से महान संत तक बन गए। किसने बनाया इन्हें इतना महान.....बिना यह जाने कि वास्तव में यह कौन है क्या यह वाकई में ज्ञानी है सदाचारी हैं उस पद के इस सम्मान के लायक हैं जो हम हमारा समाज इन्हें दे रहा है, हम ऐसा नहीं कहते कि सारे एक से ही होते हैं सारे एक से कैसे हो सकते हैं जबकि इंसान की एक हाथ की उंगलियां भी एक सी नहीं होती पर कुछ ऐसे लोग हैं जो इस पद का सम्मान का,गरिमा का दुरुपयोग करके हमारे समाज में अपना साम्राज्य स्थापित कर रहे हैं या कर चुके हैं और ऐसा करने के लिए मेरी नजर में उनसे पहले दोषी हम लोग हैं जो बिना किसी जांच परख के बिना सोचे समझे भेड़ चाल में शामिल हो जाते हैं। जबकि एक छोटी सी छोटी चीज खरीदते वक्त पूरी होशियारी का परिचय देते हुए परख कर के ही चीज लेते हैं फिर धर्म के नाम पर अपनी सारी जानकारी सारी परख सारी बुद्धिमानी कहां चली जाती है? क्यों हम ऐसे ही किसी व्यक्ति को इतना महान बना देते हैं और उसे ऐसे उचित स्थान पर बैठा देते हैं जहां से फिर वह अपना शासन चलाने लगता है और उनके अंधभक्त उनके एक इशारे पर कुछ भी करने को तैयार हो जाते हैं और फिर इन्हीं ढोंगी धर्मगुरुओं से निकलते हैं राम रहीम, रामपाल, आसाराम और भी ना जाने कितने ही ऐसे बाबा जो अपने पद की आड़ में सारे काले कारनामों को अंजाम देते हैं और उनके इस कृत्य के लिए कहीं ना कहीं हम हमारा समाज जिम्मेदार होता है क्योंकि उसको उस स्थान तक पहुंचाने का काम हम करते हैं यदि समाज अपनी सजगता दिखाएं और ऐसे बाबाओं का बहिष्कार कर दे तो हमारा समाज ऐसे लोगों की गिरफ्त से छूट सकता है। 
इसलिए सजग बने धर्म के नाम पर विश्वास तो रखें और इस विश्वास को अंधविश्वास और अंध भक्ति में बदलने ना दे।
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