क्यों करते हो बदनाम प्रेम को सच सच बोल दो न, आत्मप्रेम को छोड़ो जिस्म चाहिए ये राज खोल दो न, आगे अनुशीर्षक में पड़े क्यों करते हो बदनाम प्रेम को सच सच बोल दो न, आत्मप्रेम को छोड़ो जिस्म चाहिए ये राज खोल दो न, अब नहीं होता सहन ये बंधन, इस बंधन को तोड़ दो न, चल रही है जीवन की गाड़ी जिस झूठे पथ पे उसे मोड़ दो न, क्यों करते हो बदनाम प्रेम को .................. सींचे थे मैने भी सपने ,छूटे थे मेरे भीअपने उन अपनो की एक झलक दिखादो न, सपने में ही सही उन सपनों से मिलवादो न, शायद नफरत करते होगें अब वो अपने भी मुझसे, जिस तरह छोड़ा था मिलने को डरते होगें मुझसे वो सपने, माँ बाप को छोड़कर आई थी, अब तो ईश्वर से ये भी नहीं कह सकती माफ करदो गलती हो गई मुझसे,