कोई जात गा रहा है,कोई मात गा रहा है पाँच वर्ष की अवधि को समाज खा रहा है कोई दिल बसा रहा है,कोई मंजिल बसा रहा है आरोप,प्रत्यारोप का धमाका करोड़ो उड़ा रहा है कोई आग लगा रहा है,कोई पेड़ लगा रहा है दुविधा में मूक जनता पानी गंवा रहा है कोई जोर लगा रहा है,कोई कमजोर लगा रहा है लोकतंत्र,राजतंत्र की याद दिला रहा है कोई चुनाव करा रहा है,कोई रैली सजा है भाँति,भाँति के विश्लेषक नेता बना रहा है कोई समय खो रहा है,कोई समय बो रहा है गुणवक्ता शिक्षा अभियान स्वतंत्र रो रहा है राजनीति की जात मानसिकता निहित। #विप्रणु #yqdidi #yqbaba #musings #miscellaneous #घोषणापत्र