जी भर के अब अंगड़ाई नहीं लेते किसी भी हसीन मौसम में कि सुकून से ज्यादा डर सीने के ज़ख्मों के टांके खुल जाने का होता है और खुले टांके ज्यादा तकलीफ़ देते हैं! अब भी बरसात की रातों में बदन टूटता है जाग उठती हैं अजब ख़्वाहिशें अंगड़ाई की - परवीन शाकिर साहिबा कभी यह शेर पढ़ा था, बस कुछ ऐसा ही सबका आलम होगा.. #खुशरहिये #मुस्कुरातेरहिये #kumaarsthought #kumaarpoem #yapowrimo #kumaaryapowrimo #अंगड़ाई