खिड़की खोलते हुए मैंने देखा... खेतीहारो के गेहूं कटवाने के बाद, खड़ी दुपहरी में, मटमैले रंग की फटी साड़ी में लिपटी श्याम वर्ण वाली महिला को, पूरे खेत में छोटे-छोटे गेहूं के बालियों को ढूंढते हुए, मैंने देखा उसे एक -एक दाने-दाने को मिट्टी कंकड़ से चुनते हुए, सेर भर एकत्र करने के बाद मैंने देखा उसकी अंगुलियों को चीरते हुए, खेतीहारों के चिल्लाने पर यह कहने पर कि जाओ भागो यहां से इसमें अनाज मेरे पशुओं के लिए रहने दो, डरी सहमी खुद को समेटते हुए, मैंने देखा एक नारी को निर्धनता की आग में झुलसते हुए, थोड़ी सी गेहूं को हाथों से चक्की में पिसते हुए उसकी नाजुक उंगलियों पर छाले पड़ते हुए, मैंने देखा एक अबला को बच्चे की थाली सूखी रोटी से सजाते हुए... मैंने देखा एक औरत को भूखे पेट सो जाते हुए और सपने में बच्चे को तरकारी खिलाते हुए, मैंने देखा..... ©chanda Yadav #wordsofchanda#nojotohindipoetry#kavita#poority