करते रहे अनुनय, विनय, प्रार्थना, रख कर धीरज राम। पर विचलित हुआ न दर्प जलधि, हुए कुपित फिर श्री राम। लाओ धनुष लखन, पौरुष है जागा दशरथ नन्दन राम का। क्षमा याचना व्यर्थ यहाँ, सहन शीलता नही किसी काम का। ना मिले अधिकार कभी, तो लड़कर मिट जाने को है होता। धधक उठेगी अब ज्वाला नीरनिधि से, क्यों अब तक सोता। कोई फ़र्क नही इसे, तीन दिवस से हूँ मैं इससे पंथ माँगता। भूल गया ये ऋण हमारे पूर्वजों का, क्या सागर इसे नही जानता। है क्षमता मुझमें इतनी की, पल भर में ही मैं तुझको सूखा दूँ। पर लिया तुमने परीक्षा मेरी, की नही तुझे अब कोई क्षमा दूँ। दण्ड का अपराधी तू है, क्षण भर में ही तेरे गर्व को मैं चूर करूँ। करके ब्रम्हास्त्र का संधान, जल के स्थान पर बालू और रेत करूँ। देखा अब तक संसार ने राम की कृपा, अब कोप भी देखेगा। लहरे उठ रही है अब तक जहाँ से, अब वहाँ से नाद उठेगा।। काव्य मिलन —2 करते रहे अनुनय, विनय, प्रार्थना, रख कर धीरज राम। पर विचलित हुआ न दर्प जलधि, हुए कुपित फिर श्री राम। लाओ धनुष लखन, पौरुष है जागा दशरथ नन्दन राम का। क्षमा याचना व्यर्थ यहाँ, सहन शीलता नही किसी काम का।