इश्क तेरा उदास चेहरा मुझे अहज़ान करता है, बिन तेरे मैं गुमगश्ता रहता हूं होता अक्सर काफ़िलों के साथ हूं फिर भी खुद में आजब रहता हूं, क्या बताऊँ किसी को हवाओं में, गर्दिशों का राज-ए-नाज़िम अस्ल-ए-गैरत से तब आफ़ताब पाया है। अपनी दिल लगी की, क्या दस्ता सुनाऊ ज़माने को मैं टुटा नहीं नाज़िम था, सहारा-ए-दोस्ती का, आवाज़ह-ए-आशुफ़्ता फैलाई है लोगों ने इत्लाफ़-ए-इश्क से जो घबराए है। इश्क तेरा #उदास चेहरा मुझे #अहज़ान करता है, बिन तेरे मैं #गुमगश्ता रहता हूं होता अक्सर #काफ़िलों के साथ हूं फिर भी मैं खुद $आजब रहता हूं, क्या बताऊँ किसी को #हवाओं में, #गर्दिशों का राज-ए-नाज़िम