अम्मा के प्रश्न दोनों एक ही भाव के हैं हमारा मन बहुत चालू है, हरदम चालाकियां करता है, यथार्थ में गलती करता है, जनता है समझता भी है, मगर कभी स्वीकार नहीं करता है, स्वीकार भी तो कैसे स्वीकारे... स्वीकार करने में अहम आड़े आता है, अहम का खेल मन को खूब भाता है,