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एक दीवाना था। (पार्ट 5) मनहरलालजी को चौट लगने के ब

एक दीवाना था।
(पार्ट 5) मनहरलालजी को चौट लगने के बाद दुकान की सारी ज़िम्मेदारी अब अक्षत पर आ गई थी। वह भी मन लगाकर दुकान के काम में जुट गया था। काम जैसे उसके टूटे हुये दिल के लिये दवा का काम कर रहा था।
एक दिन वह दुकान में बैठा था कि माँ का फ़ोन आ गया।
“बेटा! अभी के अभी घर आ जाओ।“
सुन कर अक्षत घबरा गया।
“माँ, सब कुछ ठीक तो है?”
“हाँ, सब ठीक है। मीना को देखने लड़केवाले आने वाले है। तो तू जल्दी से आजा। और सुन थोड़ी मिठाई भी लेते आना।“
अक्षत जब घर पहुँचा तो लड़केवाले आ गये थे। सब बातें कर रहे थे। 
“यह हमारा बेटा अक्षत है।“मनहरलालजी ने कहा।
एक दीवाना था।
(पार्ट 5) मनहरलालजी को चौट लगने के बाद दुकान की सारी ज़िम्मेदारी अब अक्षत पर आ गई थी। वह भी मन लगाकर दुकान के काम में जुट गया था। काम जैसे उसके टूटे हुये दिल के लिये दवा का काम कर रहा था।
एक दिन वह दुकान में बैठा था कि माँ का फ़ोन आ गया।
“बेटा! अभी के अभी घर आ जाओ।“
सुन कर अक्षत घबरा गया।
“माँ, सब कुछ ठीक तो है?”
“हाँ, सब ठीक है। मीना को देखने लड़केवाले आने वाले है। तो तू जल्दी से आजा। और सुन थोड़ी मिठाई भी लेते आना।“
अक्षत जब घर पहुँचा तो लड़केवाले आ गये थे। सब बातें कर रहे थे। 
“यह हमारा बेटा अक्षत है।“मनहरलालजी ने कहा।