रात को जब सो जाती है दुनियां ताकते है आसमान से चमकता चांद टिमटिमाते सितारे होते है साथ में टिमटिमाते जुगनू ,ठंडी हवाएं, घने अंधेरे रात की चुप्पी इन सभी के साथ में जब खुद को अकेला पाता हूं। आते है ख्याल जिंदगी के उन सवालों का। जिनको कभी सुलझा न सका। आते है ख्याल कौन अपना है। कौन सपना है। कौन परिवार है। कौन किराएदार है। इन सभी उलझनों के साथ आती है। कुछ ना कर पाने का डर। क्या सच में होगा अपना भी छोटा सा घर कर पाऊंगा अपने मां के सपनो को पूरा। यां रह जाएंगी उनके आशाये अधूरा। कैसे करूंगा इस दुनियां का सामना। यां बन कर रह जाऊंगा बस एक मनोंकमना क्या सच में कुछ बनूंगा एक रोज़। क्या सच में संभाल लूंगा ये सारा बोझ। कैसे करूं ये सब अकेला मैं। कैसे खुद को आगे धकेलूं मैं। कोई आता दूसरी दुनियां से। कर जाता ये सारा काम इन्हीं ख्यालों के कश्मकश में। बीत जाती है रात, कट जाती है शाम। पता नही लगता कब निकला दिन। और कब किया आराम। फिर वहीं रात फिर वहीं सवाल। यूहीं ये चलता रहता है। अंदर ही अंदर ना ये मन बस जलता रहता है। 👀 ©एक शायर #Chand_tuta_tara_pighla