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इक उम्र निसाब ले लेके आ गए! यूं दर्द का हिसाब लेके

इक उम्र निसाब ले लेके आ गए!
यूं दर्द का हिसाब लेके आ गये।

ज़कात लाज़मी है अब तो दर्द पे
हम इतने टूटे ख़्वाब लेके आ गए!

जो तूने दी सदा तो सब समेट कर
था जो भी दस्तयाब लेके आ गये!

हमेशा एक इम्तेहां में दिल रहा,
ख़िज़ां मैं हम गुलाब लेके आ गए!

यहां तो उसकी रहमतें में बरसती हैं!
यहां भी तुम अज़ाब लेके आ गए!

क्युं मुख़्तसर सी ज़िंदगी में ख़्वाहिशें !
दिलों में बेहिसाब लेके आ गए!
1212 1212 1212

©Aliem U. Khan
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