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एक अधजली गीली लकड़ी सी मानो मैं जो धीरे धीरे सुलग

एक अधजली गीली लकड़ी सी मानो मैं
जो धीरे धीरे सुलग रही है
और दे रही है सिर्फ
आंखों को,दिल को जलाने वाला धुआं
या तो इसे जल जाना चाहिए
या बुझ जाना चाहिए
जिसे देखकर हर कोई यही सोचेगा
लेकिन उस तकलीफ को नहीं समझेगा
जो हर पल सहेज रही है दिल में
कतरा कतरा जला कर
आग दिल में बसा कर 
क्योंकि जानती हूं मैं
ये धुआं खतरनाक है मेरे लिए, मेरे अपनों के लिए
लेकिन ये भी कि
ये आग बुझ गई दिल में तो मैं भी बुझ जाऊंगी
जल गई जो एक साथ पूरी तरह
बस राख बन जाऊंगी
संतुष्टि है इस बात की 
मुझमें बाकी आपके प्रेम की आंच है
जीवित हूं दिल से यही सबसे खास है

©खामोशी और दस्तक
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