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मन की बात वाला व्यंग्य ८० के दशक के अंत तक दो शब्

मन की बात वाला व्यंग्य

८० के दशक के अंत तक दो शब्दों का ऐसा चलन चला की भोजपुरी लोकगीत, गीत एवं संगीत का बेड़ा गर्ग कर दिया, वे शब्द है "राजा जी" और भौजी, इन दो के अलावा जैसे गीत संगीत में कुछ बचा नही, फुहड़ गानों का सैलाब आ गया है, हद तो तब है जब ऐसे गीत को सार्वजनिक स्थल पर बजाया जाता है, खैर आधुनिक समाज है अच्छाई और बुराई सब है, जिसे जो चुनना हो चुन लो, देश आज़ाद है, नामचीन अभिनेता को गुटखा का विज्ञापन करने के लिए, शराब के विज्ञापन को पानी बताने के लिए, साथ ही क्रिकेट का जुआं और ताश के जुएं खेलने को प्रोत्साहित करते, आम से लेकर खास सब विज्ञापन द्वारा प्रसारित कर रहे है, उसमें मम्मी, पापा, बहन, भाई, गृहणी सब मगन है, उसपर चोर पर मोर लोन देने वाले कुकुरमुत्ते की तरह उगते लोन एप्लिकेशन, मतलब लोन लो जुआं खेलो, नौकरी वैसे भी कम, वाट्सएप है, फेसबुक है, इंस्ट्राग्राम है मगन रहो, और भी बहुत कुछ, सबकी अपनी अपनी-अपनी दुनिया, और हर एक की अपनी दुनिया में वह अकेला, अब ऐसे में देश हिंदू राष्ट्र बने या सेकुलर क्या फर्क पड़ता है, मगर बिना पढ़े लिखे नेता बनकर भाषण देना अब आसान और फायदे का सौदा है, क्योंकि आप दुनिया घुमों अलग-अलग परिधान पहनो और स्वयं को कभी गरीब, कभी दलित तो कभी चायवाला, तो कभी फ़कीर कहकर जीवन का आनंद लो, उसमें मैं भी शामिल हूं आलोचना करने के लिए या स्वयं को समझदार कहने के लिए, वैसे मुझसे बड़ा बेवकूफ़ कोई नही क्योंकि मैंने जो लिखा है वह सबको पता है।😂😅😂😅😂😅

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