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ज़र्रे ज़र्रे से टूटा हूं शायद यही इश्क का उसूल ह

ज़र्रे ज़र्रे से टूटा हूं 
शायद यही इश्क का उसूल है 

गुनाह कुछ भी नहीं 
बस तेरी रज़ा में कुबूल है


 बंदा अपनी धुन का....
ज़र्रे ज़र्रे से टूटा हूं 
शायद यही इश्क का उसूल है 

गुनाह कुछ भी नहीं 
बस तेरी रज़ा में कुबूल है


 बंदा अपनी धुन का....
rajthakur3814

Raj Thakur

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