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मेरी रूह को तेरी तब्दीली का तजुर्बा हों गया . मैं

मेरी रूह को तेरी तब्दीली का तजुर्बा हों गया . 
मैं जायज मकाम ढूंढता।
रहा गिर्दाब यें दरख्त मैं और 
मेरा मेहफील यें आम से किनारा हों गया!!
मैं तख्तो ताज की आस करता रहा ता उम्र जमाने मैं !और मेरी दास्ता यें दांग दारा होने का तसब्वुर फिजा करती रही ...ताज्जुब यें था मेरी बर्बादी का जश्न मेरे अपने जफर के साथ मना रहे।!!!

©sushant the shayer
  #Light #Shaam o shubhah##

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