प्रेम विलासी , एक अभागिन, प्रीत निलय के तरंग में, प्रेम तपस्या काल में ठहरी, प्रेम अगन को क्यू हु घेरी? अनंत काल की विरह सी बाट है, तू कहा, कैसी ये पाहेली! (पूरी कविता केप्शन में पढ़े) ~तेरी प्रियसी!~ पूरी कविता:- प्रेम विलासी , एक अभागिन, प्रीत निलय के तरंग में, प्रेम तपस्या काल में ठहरी, प्रेम अगन को क्यों हूं घेरी?