समर अनार्य / भोपाल गैस कांड --------------------------------- वो 2 दिसंबर की रात- असल में 2 और 3 की दरमियानी रात। शहर भोपाल। नवाबों का शहर। झीलों का शहर। आज भी बाक़ी भारत के तमाम शहरों से अलग, अलहदा, थोड़ा ठिठका हुआ, थोड़ा ठहरा हुआ, थोड़ा क़स्बाई। वो शहर जिसमें सब जोड़ लूँ तो सालों बिताए हैं मैंने। उस रात भी लोग आराम से घर लौटे थे। पर वो रात आसान आम रात नहीं थी। उस रात भोपाल में ज़हर बरसा था, यूनियन कार्बाइड की फ़ैक्ट्री से- मेथाइल आइसो साइनाइट नाम का ज़हर। वो क़त्ल की रात थी। वो जंग की रात थी। वो कायरों की रात थी। वो नायकों की रात थी। सबसे बड़े नायक भारतीय रेल के भोपाल स्टेशन के कर्मचारी, ख़ास तौर पर स्टेशन मास्टर हुए उस दिन- हादसे के बारे में समझ आते ही अपनी जान पर खेल भोपाल में रुकने वाली हर रेलगाड़ी को रन थ्रू पास कराया। उस रात डिप्टी स्टेशन मास्टर की ड्यूटी ख़त्म हो चुकी थी पर कुछ काम निपटाने वह अपने कार्यालय में ही थे। किसी काम से बाहर निकले। घुटन सी हुई, जलन भी। प्लेटफ़ॉर्म पर उल्टी करते, बेहोश होते सैकड़ों को देखा- अपने बॉस, उस समय ड्यूटी इंचार्ज भी, स्टेशन मास्टर हरीश धुर्ये के ऑफिस की तरफ़ भागे। धुर्ये की साँसें रुक चुकी थीं। किसी ने बताया कि एक दूसरी एक्सप्रेस ट्रेन को रन थ्रू कराने ताकि वह गैस से बच जाये वो एक कुली के साथ प्लेटफार्म 1 पर भागे थे, उसी में दम तोड़ दिया। उनके 23 और साथी कर्मचारियों का भी यही हाल हुआ था, दम तोड़ चुके थे! इधर सामने रात के एक बजे स्टेशन पर गोरखपुर कुर्ला एक्सप्रेस घुस रही थी, हज़ारों यात्रियों से भरी हुई। अभी जाने का समय नहीं हुआ था। 20 मिनट का ठहराव था। डिप्टी स्टेशन मास्टर ने एक पल में फ़ैसला ले लिया- अपनी जान की परवाह न करते हुए, भागे नहीं थे। घुटती साँसों में जितनी आवाज़ निकल सके बोले थे इस गाड़ी को निकालो, आसपास के स्टेशनों पर खड़ी गाड़ियों को वहीं रोको- हो सके तो पीछे लौटाओ। बाक़ी कर्मचारियों ने घबराए हुए से पूछा- मुख्यालय से आदेश का इंतज़ार कर लें। स्टेशन मास्टर बोले मैं पूरी ज़िम्मेदारी खुद लेता हूँ। निकाल दी। वे ये ना करते तो उस रात बरसी गैस से हुई 14,500 मौतों में कई हज़ार और का इज़ाफ़ा होता। उन्होंने ये किया, पूरी रात स्टेशन पर रहे, जूझते रहे। परिवार भोपाल शहर में अपने घर में था, मौत से जूझ रहा था- फ़िक्र तो होगी ही पर कर्तव्य नहीं छोड़ा। गम्भीर रूप से संक्रमित हुए, 17 साल अस्पताल में रहे। मौत भी इसी गैस लीक के चलते हुई। 2003 में। उनका नाम ग़ुलाम दस्तगीर था। दोहरा रहा हूँ। ग़ुलाम दस्तगीर। अपनी ही नहीं बल्कि पूरे परिवार की जान दांव पर लगा स्टेशन पर खड़ी रेलगाड़ियों को रवाना ना किया होता तो हज़ारों और मरते। हरीश धुर्ये, ग़ुलाम दस्तगीर और उन तमाम अनाम रेलवे कर्मचारियों को सलाम जिन्होंने कई हज़ार घरों के चिराग़ बुझने से बचा लिये (Samar Anarya) #भोपालगैसकांड #vss साभार ©Ram Yadav