मैं बचपने के साए में आगे बढ़ रहा था, मैं बेखबर था नींद में आगे बढ़ रहा था, झूठ के साए में मेरे घर बने थे, मैं सच को तपती धूप माने बच रहा था, मैं बचपने के साए में आगे बढ़ रहा था, मैं बेखबर था नींद में आगे बढ़ रहा था, मैं नादानियों में अपनी पल रहा था, ना जाने क्या क्या ख्वाब पाले चल रहा था, मैं बचपने के साए में आगे बढ़ रहा था, मैं बेखबर था नींद में आगे बढ़ रहा था, मैं रास्तों की ठोकरों से बच रहा था, क्या खबर थी खाई में मै गिर रहा था, मैं बचपने के साए में आगे बढ़ रहा था, मैं बेखबर था नींद में आगे बढ़ रहा था, मैं चंद पल की खुशियों के लिए लड़ रहा था, दूर वास्तविकता से कहीं भटक रहा था, मैं बचपने के साए में आगे बढ़ रहा था, मैं बेखबर था नींद में आगे बढ़ रहा था, मैं तोड़कर नाते आगे बढ़ रहा था, बेखबर था साथ मेरे वो बढ़ रहा था, मैं बचपने के साए में आगे बढ़ रहा था, मैं बेखबर था नींद में आगे बढ़ रहा था, मैं जीतकर खुशियों में पल रहा था, बेखबर था हार कर मैं बढ़ रहा था, मैं बचपने के साए में आगे बढ़ रहा था, बेखबर था नींद मै आगे चल रहा था। - वैवस्वत सिंह।