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मैं ख्वाहिशो का आजाद परिंदा हूं , मैंने गिर गिर कर

मैं ख्वाहिशो का आजाद परिंदा हूं ,
मैंने गिर गिर कर उडना सीखा है ।
हर दफा संभलना सीखा है ।।
परिस्थिति हो चाहे जैसी,
मैंने हर मुश्किल से लड़ना सीखा है ।
देखा है मैंने पिंजरो से निकलकर,
अब तो आसमा ही मंजिल लगता है ,,
आदत नहीं मुझे किसी कारवां की ,
मैंने अकेले उड़ना अपने हौसलों से सीखा है।।

©The Mysterious Poet मैं ख्वाहिशो का आजाद परिंदा हूं ,
मैंने गिर गिर कर उडना सीखा है ।
हर दफा संभलना सीखा है ।।
परिस्थिति हो चाहे जैसी,
मैंने हर मुश्किल से लड़ना सीखा है ।
देखा है मैंने पिंजरो से निकलकर,
अब तो आसमा ही मंजिल लगता है ,,
आदत नहीं मुझे किसी कारवां की ,
मैं ख्वाहिशो का आजाद परिंदा हूं ,
मैंने गिर गिर कर उडना सीखा है ।
हर दफा संभलना सीखा है ।।
परिस्थिति हो चाहे जैसी,
मैंने हर मुश्किल से लड़ना सीखा है ।
देखा है मैंने पिंजरो से निकलकर,
अब तो आसमा ही मंजिल लगता है ,,
आदत नहीं मुझे किसी कारवां की ,
मैंने अकेले उड़ना अपने हौसलों से सीखा है।।

©The Mysterious Poet मैं ख्वाहिशो का आजाद परिंदा हूं ,
मैंने गिर गिर कर उडना सीखा है ।
हर दफा संभलना सीखा है ।।
परिस्थिति हो चाहे जैसी,
मैंने हर मुश्किल से लड़ना सीखा है ।
देखा है मैंने पिंजरो से निकलकर,
अब तो आसमा ही मंजिल लगता है ,,
आदत नहीं मुझे किसी कारवां की ,