मैं ख्वाहिशो का आजाद परिंदा हूं , मैंने गिर गिर कर उडना सीखा है । हर दफा संभलना सीखा है ।। परिस्थिति हो चाहे जैसी, मैंने हर मुश्किल से लड़ना सीखा है । देखा है मैंने पिंजरो से निकलकर, अब तो आसमा ही मंजिल लगता है ,, आदत नहीं मुझे किसी कारवां की , मैंने अकेले उड़ना अपने हौसलों से सीखा है।। ©The Mysterious Poet मैं ख्वाहिशो का आजाद परिंदा हूं , मैंने गिर गिर कर उडना सीखा है । हर दफा संभलना सीखा है ।। परिस्थिति हो चाहे जैसी, मैंने हर मुश्किल से लड़ना सीखा है । देखा है मैंने पिंजरो से निकलकर, अब तो आसमा ही मंजिल लगता है ,, आदत नहीं मुझे किसी कारवां की ,