ख्वाब वो मेहताब का मेरी नींद का तू वो गहरा ख्वाब है, भूलना भी चाहूं पर तू बेशकीमती सवाब है, मैं भटकता राही तो रहनुमा तू है, तेरी रोशनी को तरसू वो लॉ तू है। सूरज सा तेज है तुझमें, पास आना भी चाहूं पर थोड़ा गुरूर है मुझमें, दूर जाने की ख्वाहिश तो ना थी, पर अमावस की रात की साज़िश कुछ और थी। तेरी बाहों में आ जाऊं या तुझे बाहों में भर लूं, या तुझसे दूर जाने का एक वादा कर लू, में तो एक ठहरा किनारा हूं, कहीं समन्दर ना बन जाना तू । बारिश की बूंद अगर मैं बन जाऊं, पनाह देना मुझे कहीं मैं बिखर ना जाऊं, अगर ना हो आसरा तो नदियों में प्रवाहित कर देना, या उन बंजर खेतों में मुझे सींच देना, लहलहाए जब फैसले तेरी कठोर धरती पे, गर्व होगा मुझे अपनी छोटी सी ज़िन्दगी में। ©अशोक साह ख्वाब वो मेहताब का