आ जाता जब हाथ में ,गुलाब सा पैसा सर चढ़के झूमता, शराब सा पैसा राजा को कब रंक ,ये रकीब कर डाले बाजी पलटे चालबाज ,दाव सा पैसा खनकें जब कलदार, हो हसीन हर मौसम ठंडी में गर्मी करे ,अलाव सा पैसा मालिक सबका है बना, गुलाम ये देखो समझे खुदको लखनवी, नवाब सा पैसा लूटे उसका चैन ,जो हराम की खाए पचता कब दो नम्बरी ,जुलाब सा पैसा जाने बदले ऊंट ,और कौन सी करबट टिकता ना इक ठौर ,ये बिलाब सा पैसा आया "सपना" पास, रंग ढंग सब बदले लाता ऐसा नूर ,आफताब सा पैसा sapna manglik #shayri#brokenheart#sapnawritesup