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बिस्तर की सिलवटों पर नींद बेचैन पड़ी है, कभी हाथों

बिस्तर की सिलवटों पर नींद बेचैन पड़ी है,
कभी हाथों से हटाता हूँ सिलवटें,
कभी पल्कें मूंद खुद को जगाता हूँ, 
सुबह देखी जो सलवटे, 
निंदो से चेहरे पे पड़ी है,

उठकर ठन्डे पानी से चेहरा धो डाला,
था जो बनावटी चेहरा मेरा अब तक,
सजाया सवारा मुस्कुराकर, 
लकीरों को खो डाला।

बाहर निकला देखा तेज बरसात है आज,  
थोड़ा सा भीगा थोड़ा सा सूखा रह गया,
गीले सूखे मौसम में अपनी 
तन्हाई को खो डाला।

तनहा शायर हूँ-यश 










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©Tanha Shayar hu Yash
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