कितना हसीन वो मुखड़ा था, वो चांद ही थी, या फिर चांद का टुकड़ा था, उसके भाल बिंदी से सजी थी, मृगनैन में काजल लगी थी, उलझे लट गेसुओं के गालों को सहला रही थी, वो टकटकी लगाकर हमें सिर्फ देखे जा रही थी, कुछ कहना चाहती थी, पर लव खामोश थे, अनकही बातों को आंखों से कहती जा रही थी, ये महज एक इशारा था, या इकरार मोहब्बत का, पता नहीं क्यूं अपने छत से वो रेशमी दुपट्टा उड़ा रही थी, नायाब तोहफा थी कुदरत का सजाया हुआ, जो पूनम की रात में चांदनी से नहा रही थी, वो पहली मुलाकात भी बहुत हि अजीब था, मैं दूर होकर बिल्कुल उसके करीब था, #टुकड़ा चांद का Ritika suryavanshi pooja negi# anjali jain