रिश्तों के इस महाभारत में खड़ा हुआ फिर पार्थ है कृष्ण बांच रहे हैं गीता उनको रग-रग में जिनके स्वार्थ है अट्टाहास करता है दुर्योधन अपनी कपटी चालों पर किंकर्तव्यविमूढ़ पड़ा है अर्जुन, रिश्तों का यही यथार्थ है चक्रव्यूह की रचना कर दी नारायण के ही सहयोग से ढूंढ रहा है अभिमन्यु भी इस गीता का क्या शब्दार्थ है दुर्योधन के बने सारथी जो धर्मध्वजा के वाहक थे नैतिकता का ढोंग किये हैं अद्भुत यह पुरुषार्थ है सुई की नोक बराबर भूमि देना दुर्योधन को स्वीकार्य नहीं सत्ता शक्ति जिसने लूटी वह दुर्योधन भी निःस्वार्थ है रिश्तों के महाभारत